https://www.canva.com/design/DAGV7dS4xDA/LuuDh4LOA2wcvtaTyYmIig/edit?utm_content=DAGV7dS4xDA&utm_campaign=designshare&utm_medium=link2&utm_source=sharebutton

Search This Blog

Law Logic Learner

श्री सुरेश चन्द्र मिश्र वरिष्ठ शिक्षाविद द्वारा आलेखित ग्यारह सोपान वह लेखन मे अपनी दिन योजित कर प्रतिदिन एक नया अध्याय अधियाचित और आत्मअर्पित करने काआदेश करते है ।

शिक्षा और सच्चाई से जीने की प्रेरणा
"ग्यारह सोपान" जीवन जीने का एक मार्गदर्शन है
शिक्षा, संघर्ष और आत्म-समर्पण के मूल्यों पर आधारित
लेखन दिनचर्या योजित कर एक नया अध्याय अधियाचित और आत्त्मार्पित करने काआदेश
सुखी और दुखी मन से संसार सागर में गोते लगाता हुआ जीवन की कटु एवं विषम परिस्थितियों में रहकर उनको ठोकर मारता हुआ एवं अपने को संयत रखता हुआ निरंतर बढ़ रहा हूं |




कानपुर 3, मार्च, 2025
03 मार्च 2025, दिन सोमवार, लखनऊ श्री सुरेश चन्द्र मिश्र वरिष्ठ शिक्षाविद ने अपने जीवन के संघर्षों को "ग्यारह सोपान" में प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में उपस्थित प्रत्येक वाक्य हमें शिक्षा और सच्चाई से जीने की प्रेरणा देता है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी उल्लेखनीय है; उनके दो बेटे उच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं, जबकि उनकी बेटी ने संस्कृत में पीएचडी की है और सरकारी सेवा में कार्यरत हैं। हाल ही में, उनकी धर्मपत्नी का निधन हुआ है।
श्री मिश्र लेखन में अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करते हैं और प्रतिदिन एक नया अध्याय लिखने का प्रयास करते हैं। यह न केवल उनके लिए एक अंश है, बल्कि वह अपने पाठकों को भी आत्मसमर्पण और संवेदनशीलता की ओर प्रेरित करते हैं। उनकी कहानी उनके व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा देती है।
यह "ग्यारह सोपान" सिर्फ एक पुस्तक नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक मार्गदर्शन है, जो शिक्षा, संघर्ष और आत्म-समर्पण के मूल्यों पर आधारित है।
वह लेखन मे अपनी दिनचर्या प्रतिदिन योजित कर एक नया अध्याय अधियाचित और आत्त्मार्पित करने काआदेश करते है ।


ओम श्री गणेशाय नमः
अद्भुत अविश्वसनीय किंतु सत्य स्वयं के जीवन से
संबंधित अक्षरशः सत्य उपन्यास
प्रथम सर्ग सोपान
मेरे बाबा बहुत ही धार्मिक प्रकृति के थे | वह निरंतर साधु संतों की सेवा करने में लगे रहते थे | वह दो गांव के जमींदार थे | उस जमाने के बहुत बड़े रईस थे | गांव में बहुत ऊंची जगह पर मेरा महल था जहां पर उसकी नींव थी उसके नीचे गांव वालों के घर थे |
हमारे गांव के पास ही कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक सिद्ध नस्योली वाले बाबा की कुटिया थी जहां जाकर कई बार बहुत सवेरे उन्हें हवन कराते थे और लौट आते थे इसी बीच बाबा जी स्वर्गवासी हो गए |
यह जानकर हमारे बाबा रोने लगे | इस पर अचानक नस्योली वाले बाबा उनकी रूह बुआ के शरीर में आकर बोले कि क्या यही मैंने तुम्हें शिक्षा दी थी और बुआ के शरीर पर उनका शरीर दिखाई देने लगा|
घर की सभी महिलाएं रोने लगी | इस पर हमारे बाबा ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं नहीं रोऊंगा | आप स्वर्ग में चले जाएं इस समय नस्योली वाले बाबा बुआ के शरीर पर थे | उस हाथ पर एक हरी लौंग आ गई और उन्होंने कहा जब तक तुम्हारे पास यह रहेगी तुम्हारी निरंतर उन्नति होती रहेगी किंतु इस बात की उपेक्षा करते हुए उसे लौंग को सोने से गढ़वा कर घर के बच्चे को पहना दिया और वह कहीं खो गई भविष्य में उसका दुखद परिणाम निरंतर आगे की पीढ़ियों को भुगतना पड़ा प्रथम सर्ग समाप्त
ओम श्री गणेशाय नमः
द्वितीय सोपान
जैसा कि पिछले सर्ग में कहा था सिद्ध पुरुषों की अवहेलना करना बड़ा ही विनाशकारी होता है| वही सब चार वर्ष तक होता रहा | हर घर में कुछ बच्चे विनाशकारी प्रकृति के होते हैं | उसका परिणाम घर के अन्य सदस्यों को भी भुगतना पड़ता है | सरदार पटेल के कारण हमारे बाबा के दोनों गांव छीन लिए गए और उसके भुगतान स्वरूप सरकार ने 40 वर्षों के बांड दे दिए जिनका मूल्य नाम मात्र का था
जैसे कुछ दिन पहले कोरोना बीमारी चली थी, उसी तरह पूरे देश में प्लेग की बीमारी चली थी |उस समय बैंकिंग सिस्टम नहीं था | पैसा घर में ही रखा जाता था | अतः हमारे बाबा के पिता ने चेत्ता चमार से 36 बर्तन चांदी के सिक्कों एवं मोहरों से भरे हुए बाग में गडवा दिए और जब प्लेग खत्म हुआ तो अपने बाग से ही उन्हें घर मंगवाये किंतु प्लेग से हमारे बाबा के पिता का स्वर्गवास हो गया | वह नहीं बता पाए कि घर में वह बर्तन कहां पर गाड़े हैं | बाबा ने जाने कितने ज्योतिषियों को बुलाकर पता लगवाया किंतु वह सब बेकार गया |
जमींदारी जाने के कुछ वर्षों पूर्व हमारे बाबा माल गुजारी जमा करने बिलग्राम तहसील हरदोई जिला में आते थे | हमें साथ लेकर राशी घोड़े पर हमको बिठाकर अपने आप ऊबड़ खाबड़ सड़क पर चलते हुए कभी-कभी अपनी गोद में राशी घोड़े पर हमें भी बैठा कर चलते थे किन्तु सड़क खराब होने के डर से उन्हें उतर कर चलना पड़ता था हमारे कारण जिससे हमें चोट ना लगे | कई वर्षों तक यही क्रम चलता रहा हमारे बाबा इसी बीच में बीमार पड़ गए उन्हें दमा की शिकायत हो गई थी हमारे बाबा के छोटे भाई ने जो पीछे की ओर रहते हैं
सब कीमती सामान अपने यहां रख लिया | हमारी दादी ना जान सकी किंतु हमारे पिताजी जो कि आर्य समाज के विश्वविद्यालय के छात्र थे आकर के उन्हें ठीक किया | जैसा कि पहले बताया था हर घर में कुछ ना कुछ बिगड़े हुए लड़के भी होते हैं उन्हें सुधारना मुश्किल होता है फिर भी उन्हें सुधारने का प्रयास मां-बाप करते ही हैं |हमारे बाबा ने पिताजी को कैमरा खरीदने के लिए बम्बई भेजा साथ में एक फोटोग्राफर भी ले आए जिससे हमारे चाचा को फोटोग्राफी दिखाई जा सके लेकिन वह सब व्यर्थ गया चाचा ने फोटोग्राफर को मारा और कैमरा भी न जाने कहां गायब कर दिया बाबा के अनेकों प्रयास करने का भी कुछ ना हो सका | वहीँ सिद्ध महापुरूष के श्राप के कारण यह सब घट रहा था | हमारे बाबा एक गाय जरूर रखते थे क्योंकि वह गाय का दूध पीते थे | गाय का दूध दुहने के समय उन्हें फालिज लग गई और इस कारण उनका देहावसान हो गया |
हमारे पिताजी पर ही जमींदारी का सब भार पड़ गया जो कार्य वह करते थे उन्हें भी करना पड़ा |हमारी दादी बड़ी ही हडलैब थी | वह उतना ही रुपया छोड़ती थी जितना माल गुजारी अदा हो सके | उनका महादेव नामक एक जिलेदार था वही यह सब करता था पिताजी बिलग्राम तहसील में बी जी इंटर कॉलेज में प्रवक्ता थे उन्हें जमींदारी का भी काम करना पड़ता था
तृतीय सोपान
जिस विद्यालय में पिताजी प्रवक्ता थे उसके मैनेजर ने पिताजी को श्राद्ध खाने के लिए आमंत्रित किया | पिताजी ने उनके आग्रह को ठुकरा दिया और कहा कि श्राद्ध में नहीं खाऊंगा | इस बात पर उसे अत्यधिक क्रोध आया और उन्हें विद्यालय से निकालने का विभिन्न प्रकार से प्रयास करने लगा | इस समय 1947 में देश स्वतंत्र हुआ था हमारे पिताजी ने विद्यालय में भाषण दिया जिसमें गांधी जी को नाथूराम गोडसे ने गोली से उड़ा दिया था इसी संदर्भ में हमारे पिताजी ने कहा कि विभाजन के समय में नोआ खाली में न जाने कितनी महिलाओं की तरह-तरह से इज्जत लूटी गई |उसी के परिणाम स्वरुप वह मारे गए इस प्रकार का स्वयं उन्होंने देखा है | यह मौका प्रबंधक के हाथ लग गया और उन्होंने पिताजी को निकालने के लिए सस्पेंड कर दिया
चतुर्थ सोपान
रोजी-रोटी के लिए कुछ ना कुछ कार्य करना ही था तथा पिताजी ने गुड का कार्य शुरू कर दिया | शाहाबाद में गुड़ की मंडी से हजारों का गुड खरीद कर ट्रकों पर लाद कर और ट्रकों से कानपुर भेज दिया किंतु जैसे ही इनके ट्रक पहुंचे गेट बंद हो गया | फिर लाचारी में उन्होंने उस गुड को नाम मात्र के पैसे लेकर आढतियों के यहां रख दिया लाखों का सामान सैकड़ो में चला गया |
दुर्भाग्य पर दुर्भाग्य पीछे पड़ा था तब हमारे पिताजी ने सोचा कि गांव के पास स्कूल खोल दिया जाए और उन्होंने स्कूल खोला जिसमें काफी विद्यार्थी आने लगे लेकिन वही के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विद्यालय का था उसे बड़ी हानि हुई उन लोगों ने इन्हें मार डालने का षडयंत्र किया किंतु एक महिला स्त्री ने पिताजी को महाराज बता दिया | पिताजी के स्कूल में पढाए हुए विद्यार्थी भी पिताजी के स्कूल में पढ़ा रहे थे उन्हें भी लालच देकर संघ के लोगों ने फोड़ लिया यह जानकर पिताजी को वहां से भागना पड़ा |
फिर हम सब लोग मैं पिताजी व माताजी हरदोई में एक किराए के मकान में रहने लगे तब अचानक पता चला कि पिताजी की गुरुकुल विश्वविद्यालय की शिरोमणि डिग्री मान्य हो गई तो तुरंत उन्नाव आकर एक एल०टी० कॉलेज में पिताजी ने अपना एडमिशन करवा लिया एवं हमारा राजा शंकर सहाय इंटर कॉलेज में एडमिशन हो गया जहां से हमने आठवां पास कर लिया एवं पिताजी ने एल०टी० डिग्री हासिल कर ली किंतु पिताजी की प्रैक्टिस की डिग्री तो प्राप्त कर ली लेकिन एल टी की थ्योरी की डिग्री पास ना कर सके क्योंकि यह लिखते तो बहुत अच्छे थे किंतु थोड़ा लिख पाते थे हम लोग फिर हरदोई लौट आए किंतु हाफ एलटी के कारण निरंतर चार साल पास के घंटाघर जाते थे किंतु वहां अखबार पढ़कर निराशा लौटते थे
किंतु दैव वशात पिताजी एल टी थ्योरी में पास हो गए और उन्हें मोहनलालगंज इंटर कॉलेज में सर्विस मिल गई |एक वर्ष बाद सनातन धर्म इंटर कॉलेज रकाबगंज में सर्विस करने लगे एवं मेरा नाम का कान्यकुब्ज वोकेशनल कॉलेज में लिखवा दिया वहां से मैं ग्यारहवां पास करने वाला ही था कि मैं मानसिक रोग से पीड़ित हो गया
दिमाग पर नियंत्रण न कर पाने के कारण मनुष्य पशु से भी बदतर हो जाता है यही स्थिति मेरी थी और मेरी आगे की स्थिति आगे बताऊंगा
पंचम सोपान
इस लेख में पिछली कुछ बातें छूट गई हैं जिन्हें बात कर फिर और बातें लिखूंगा पहली भूल तो हमारे पिताजी ने श्राद्ध ना खाकर की थी जिससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया था और दूसरी भूल उन्होंने लखनऊ आकर तब की जब उन्होंने अपनी आयुर्वेद की दुकान खोलकर की
पहले झंडा वाले पार्क के पास पोस्ट ऑफिस नहीं था वहां उन्होंने दुकान ली और बरेली से फर्नीचर मंगा कर अपना दवा का कार्य शुरू कर दिया किंतु दुर्भाग्यवश उनकी सबसे छोटी बहन गांव में बीमार हो गई और वह उसके इलाज के लिए काफी दिन गांव में ही रहे उसे दुकान मालिक ने उनकी दुकान का ताला तोड़कर बरेली का फर्नीचर नीलाम कर दिया और अपनी दुकान पर कब्जा कर लिया इस दूसरी भूल ने उनके जीवन को पंगु बना दिया इस बात के पहले की स्थिति को मैं बता चुका हूं अब मैं फिर अपनी पूर्व स्थिति पर आता हूं मैं मारवाड़ी गली के धर्मशाला व मंदिर में दो कमरे वाले मकान में रहता था वही रात में एक विषधर चूहे ने हमें काट लिया और मैं पशुओं से भी गंदी स्थिति को प्राप्त हो गया हमारे पिताजी हमें बरेली के पागल खाने ले जा रहे थे तभी एक व्यक्ति ने बघौली स्टेशन पर पिताजी को बताया कि पास में एक गंगापुर गांव है जहां गंगा दयालु नामक एक वैघ रहते हैं वहां पर यह लड़का निश्चित रूप से ठीक हो गया है
षष्ठम सोपान
इस सोपान लिखने को से पहले मैं बहुत ही गंभीर बातें लिखने में छोड़ गया हूं वह सब सिलसिले वार लिखने जा रहा हूं | वह जीवन की बहुत ही गंभीर महत्वपूर्ण घटनाएं हैं | के०के०वी० कॉलेज से मैंने एन०सी०सी० भी ले रखी थी मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण वही ड्रेस पहने हुए मैं अमौसी एयरोड्रम में प्रविष्ट हो गया और उसमें एक बहुत बड़े हाल में घुसकर बैठ गया | वहां एक एक अद्भुत मशीने थी | ईश्वर की कृपा से उनको मैंने छुआ नहीं| उनके छूने से हो सकता था कि मैं मर जाता |उसी समय वहां एक कर्मचारी आ गया वह हमें पकड़कर पुलिस कक्ष में ले गया वहां पर जांच होने पर मैंने सब बातें बता दी वहां से हमें बंथरा थाने में भेज दिया गया जहां एक लाकअप में मैं बंद कर दिया गया | भाग्य की विडंबना की जैसे मैंने उसका ताला झटका वह खुल गया तो मैंने वहां पर रखा हुआ हेडफोन लिया और बड़ी मस्ती से सरोजनी नगर होते हुए सड़क पर चलता रहा | मैंने हेडफोन वजनी होने के कारण सरोजिनी नगर के एक तालाब में फेंक दिया और कोई स्टेशन पर गाड़ी खड़ी थी उस पर बैठकर कानपुर पहुंच गया
अब मेरी बहुत ही दुर्गत स्थिति आने वाली थी | मैं एक बड़ी और भव्य इमारत में प्रविष्ट हो गया वह कोई सरकारी ऑफिस रहा होगा वहां पर रक्षक पहरा लगा रहे थे किंतु किसी ने मेरी ओर ध्यान ना दिया
दिमागी स्थिति गड़बड़ होने के कारण जो पेपर वेट कोठी से बटोरे थे एवं जिनको मैं हीरे जवाहरात समझ रहा था उन्हें सड़क पर ही छोड़कर मैं पास के ही चाट के ठेले पर गया और भूखे होने के कारण जमकर चाट खाई किंतु पैसे ना होने के कारण चाट वाले ने मेरी एनसीसी ड्रेस के सब कपड़े उतार दिए और मुझे नंगा कर दिया पास ही एक पेट्रोल टंकी थी उसके मालिक ने मुझे एक टाट ओढने के लिए दे दिया एवं ठंड के कारण वहां तपने वालों की गर्म राख से मैं अपने आप को गर्म करता रहा और पास में ही प्लेटफार्म पर एक गाड़ी में बैठ गया गाड़ी चल पड़ी वह मुगलसराय स्टेशन पर जाकर रुकी जो बनारस का अंतिम स्टेशन है |मैं उतरा और पास के ही मकान में घुसने लगा वहां के लोगों ने पागल समझ कर अपने घर से भगाया एवं मैं गन्ने के खेतों में गन्ना चूसता हुआ एक बहुत बड़े सूखे नाले में उतरकर दूसरी ओर एक झोपड़ी में खाट पर जाकर सो गया सवेरा होने पर लोग हमें उठा कर ले गए वहां लोग कंडे जलाकर ताप रहे थे उन्होंने मुझसे बातें की और खाने को भी दिया कुछ खाकर ताकत आई एवं उनके बच्चों को पढ़ाया | वहां से चलकर एक खेत की मेड़ पर बैठकर जमकर मटर खाई | इतनी मीठी मटर अपनी जिंदगी में आज तक नहीं खाई | वह मटर खाकर वहीं सड़क के किनारे में घंटे सोता रहा और सोने के बाद ही एक मकान पर रोड़ी कुटे हुए स्थान पर सो गया तीर्थ स्थान पर रात भर सोने का प्रभाव यह हुआ कि मैं मानसिक रूप से पूर्ण रूपेण स्वस्थ हो गया मेरे अंदर किसी से कुछ पूछने की आदत समाप्त हो गई थी वह ठीक हो गई और मैं एक आदमी से पूछा कि लखनऊ जाना चाहता हूं तो उसने कहा कि पास में ही प्लेटफार्म है गाड़ी जाने ही वाली है यह सुनकर मैं दौड़कर गाड़ी पर बैठ गया और थोड़ी समय में सोते-सोते लखनऊ प्लेटफार्म पर आ गया चारबाग स्टेशन पर मैं शीघ्र ही मारवाड़ी गाली के धर्मशाला वाले मंदिर में जाकर अपने टाट वाले लबादे को उतार दिया एवं अच्छे कपड़े पहन लिए अब मैं तीर्थ स्थान के प्रभाव वश पूर्ण स्वस्थ हो गया था
मारवाड़ी वाली जगह को कर मैं रस्सी बटान वाले बहुत बड़े मकान में एक कमरा किराए पर लेकर रहने लगा हमारी माताजी परिचित एक महिला एवं उनके दो लड़के वहां रहते थे इसलिए मकान मालिक ने हमारे पिताजी को मकान किराए पर दे दिया एक बहुत बड़े बॉक्स में जिसमें सभी महत्वपूर्ण सामान था वहां हम लोग ले आए और रहने लगे तभी भाग्य वश सनातन धर्म कॉलेज में जहां पिताजी सर्विस करते थे रकाबगंज में ही कमरा किराए पर मिल गया वहां से अपना सामान लेकर आ गए जहां पर हमारे पिताजी पढ़ते थे इस विद्यालय में एक कमरा मिल जाने से बड़ी सुविधा हो गई और जीवन की गाड़ी सुचारू रूप से चलने लगी वहां से हमारे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन शुरू हो गया मैं लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने लगा और 1962 में मैं राजनीति शास्त्र में एम ए कर लिया |
अष्टम सोपान
इसी वर्ष मेरा विवाह संपन्न हुआ और मैं एल टी कॉलेज में प्रवेश ले लिया एलटी करने के बाद मैं रामाधीन सिंह कॉलेज में सर्विस करने लगा एवं निरंतर 36 वर्ष वाहन सर्विस कर रिटायर हुआ तथा पहले समाज सेवा संस्थान नामक एक संस्था अलीगंज में स्थापित की और उसके बाद वहीं आर्य समाज मंदिर पूर्णिया अलीगंज में अध्यक्ष बनाकर आर्य समाज का कार्य संपन्न करवाने लगा हमारे पिताजी ने 14 वर्ष तक आर्य समाज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था इसलिए आर्य समाज मंदिर उन्होंने कार्य को पूरा करने के लिए यह कार्य किया यह उसी समय मैं युग विमो नामक एक पुस्तक लिखी थी जिसमें समस्त विश्व की सभी समस्याओं का निराकरण संभव है एवं दूसरी पुस्तक आयुर्वेद पर लिखी जो शरीर के सभी रोगों के निराकरण में समर्थ है यदि उसके अंदर लिखे हुए मित्रों को सम्यक रूपेण व्यवहार में लाइन तो शरीर में कोई भी रोग नहीं रह सकता है इन दोनों पुस्तकों को लिखने में मेरे पिताजी का ही योगदान है वह एक उद्भक्त विद्वान नहीं थे पर अपितु एक वैज्ञानिक भी थे उन्हें स्वर्ण बनाने की विद्यार्थी थी किंतु अपने कार्य की सफलता के लिए ऐसे प्रयोग किया कि जिससे उनके जीवन लीला समाप्त हो गई उनकी जीवन की बहुत सिलालसाएं थी परंतु ईश्वर की इच्छा से वह सब पूरी ना हो सके एक वैज्ञानिक बहुत कुछ चाहता है परंतु ऊपर वाले की इच्छा प्रमुख है ओम श्री गणेशाय नम नम सोपान बहुत ही अविश्वसनीय अद्भुत किंतु सत्य बातें छूट गई है अब उन बातों को अब लिखूंगा महिला कॉलेज अमीनाबाद जहां पर खत्म होता है और अमीनाबाद इंटर कॉलेज के ठीक सामने एक गली गई है उसी के अंदर चंद कदमों पर एक जीन ऊपर की ओर गया है जो जाने पर बाई और को है हमारे पिताजी बहुत ही निडर व्यक्ति थे हम और वह अमीर उद दौला पुस्तकालय नियमित रूप से रात में कुछ महत्वपूर्ण पुस्तक पढ़ने के लिए जाते थे साथ में ही एक सफेद पोशाक पहने हुए एक आदमी भी वहीं पर बैठा मिलता था हम जब लोगों को पढ़कर निकलते थे तभी वह भी निकलता था एक दिन की बात है कि जब हम लोग घर आ गए थे तो पिताजी लौट कर फिर उसी गली में पहुंचे जहां वह सफेद पोस्ट व्यक्ति पिताजी का इंतजार कर रहा था पिताजी से उसे व्यक्ति ने कहा ऊपर जाने से पहले आपको आंखों पर पट्टी बांधनी पड़ेगी पिताजी उसकी बात से सहमत होकर कर वैसा ही किया ऊपर जाकर उसने आंखें खोल दी वह एक गोल कमरा था जिसमें चारों ओर शीशे की अलमारी में हजारों सोने के मोहरे चमक रही थी उसे व्यक्ति ने कहा यह सब आपकी ही है आप ले सकते हैं किंतु पिताजी ने इनकार कर दिया उसे व्यक्ति ने फिर आंखों पर पट्टी बांधकर नीचे उतार दिया और पट्टी खोलकर गायब हो गया जब यह बात पिताजी ने हम लोगों को बताई हम सब लोग बहुत गुस्सा हुए तब से उनके साथ में बराबर लाइब्रेरी जाता रहा किंतु वह हम लोगों को दिखाई नहीं दिया
दशम सोपान
छूटी हुई अद्भुत बातों में दूसरी आश्चर्यजनक बात यह थी कि पिताजी के देहांत के बाद घर के अन्य सदस्यों ने हमारे साथ अन्याय आरंभ कर दिया एवं मैं अलीगंज वाले मकान में आ गया अचानक मेरे एक भाई की दोनों किडनी खराब हो गई और डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया और उसके मृत शरीर पर पिताजी का प्रेत आने लगा हम पर अन्याय होता देख पिताजी के प्रत ने उसकी यह दशा की इस प्रकार प्रेत योनि पर मुझे विश्वास हो गया
एकादश सोपान
जीवन की विभिन्न परिस्थितियों को झेलता हुआ मैं अनेकों हुड़दंग करता रहा हृदय अंगम करता रहा अनेकों कटु एवं मधुर विचारधाराओं की तरंगों से आलोकित होता हुआ मैं निरंतर जीवन की विभिन्न परिस्थितियों को झेलता हुआ सुखी और दुखी मन से संसार सागर में गोते लगाता हुआ जीवन की कटु एवं विषम परिस्थितियों में रहकर उनको ठोकर मारता हुआ एवं अपने को संयत रखता हुआ निरंतर बढ़ रहा हूं |

0 Comment:

Post a Comment

Site Search