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बांग्लादेश 26 मार्च 2025 को अपना 55वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, भारत की बांग्लादेश मुक्ति में अहम भूमिका 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान का आत्मसमर्पण

बांग्लादेश की स्वतंत्रता की नींव 1970 के आम चुनावों में
25 मार्च 1971 को पाकिस्तान की सेना ने "ऑपरेशन सर्चलाइट" शुरू किया
बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान करीब ३० लाख शहीद
शेख मुजीब ने 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की
भारत में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन दे आजाद कराया था
बांग्लादेश आज़ादी की लड़ाई में ३० लाख शहीद व इंदिरा गांधी को याद करने का अवसर

कानपुर:27 मार्च 2025
26 मार्च 2025 बांग्लादेश का स्वतंत्रता दिवस 26 मार्च को मनाया जाता है, सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष, पहचान और स्वतंत्रता संग्राम की गाथा का प्रतीक है। यह राष्ट्र को आज़ादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका व बलिदानों को याद करने का अवसर है ।

 सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार
Kranti Kumar

@KraantiKumar

पाकिस्तानी सेना बांग्लादेशियों की हड्डी तोड़ रहे थे. महिलाओं का बलात्कार कर रहे थे. खाने को अन्न नही था, पीने को साफ पानी नही था और ना ही हगने को जगह नही थी. पाकिस्तान सेना की अत्याचार से बचने के लिए लोग इधर उधर भाग रहे थे. गांव के गांव खाली हो रहे थे. चारो तरफ कॉलेरा महामारी फैल गयी थी. पाकिस्तान सेना की गोली से बचने वालों को कॉलेरा मार रहा था. बांग्लादेश में भयानक स्थिति थी. बांग्लादेश के मुश्किल हालात में भारत काम आया. आयरन लेडी इंदिरा गांधी ने 2,50,000 लाख फौज बांग्लादेश में भेजा. बांग्लादेशियों को पाकिस्तानी सेना से बचाने में 1525 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. भारतीय सेना 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को नाक रगड़े पर मजबूर कर दिया. इस तरह 1971 में बांग्लादेश का जन्म हुआ.
संघर्ष का इतिहास
बांग्लादेश की स्वतंत्रता की नींव 1970 के आम चुनावों में रखी गई थी, जब अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान में भारी बहुमत के साथ जीत हासिल की। हालांकि, पश्चिमी पाकिस्तान की सत्ता ने इस चुनाव को मान्यता देने से इनकार कर दिया, जिससे बंगाली समुदाय में असंतोष बढ़ा। 7 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर रहमान ने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया, जिसके फलस्वरूप 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान की सेना ने "ऑपरेशन सर्चलाइट" शुरू किया। इस ऑपरेशन में हजारों निर्दोष नागरिकों का नरसंहार किया गया, जिसने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा का मार्ग प्रशस्त किया।
शेख मुजीब ने 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की। इसके बाद बांग्लादेश मुक्ति युद्ध शुरू हुआ, जिसमें 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ।
बलिदान और संघर्ष
बांग्लादेश के नागरिक इस दिन को अपने संघर्ष और बलिदान का प्रतीक मानते हैं। २५ मार्च १९७१ को शुरू हुए ऑपरेशन सर्च लाइट से लेकर पूरे बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में जमकर हिंसा हुई। बांग्लादेश सरकार के मुताबिक इस दौरान करीब ३० लाख लोग मारे गए। हालांकि, पाकिस्तान सरकार की ओर से गठित किए गए हमूदूर रहमान आयोग ने इस दौरान सिर्फ २६ हजार आम लोगों की मौत का नतीजा निकाला। विजय दिवस, जो 16 दिसंबर को मनाया जाता है, उस महान दिन की याद दिलाता है जब बांग्लादेश अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करने में सफल हुआ।
समारोह और समर्पण
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बांग्लादेश में विभिन्न समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिनमें स्वतंत्रता दिवस परेड, राजनीतिक भाषण, संगीत समारोह आदि शामिल हैं। प्रमुख समारोह ढाका के सावर में राष्ट्रीय स्मृति शौध पर आयोजित किए जाते हैं, जहां प्रधानमंत्री शहीदों को श्रद्धांजलि देती हैं। इस दिन, बांग्लादेश का राष्ट्रीय ध्वज हर जगह फहराया जाता है और देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं。
बांग्लादेश ने स्वतंत्रता के बाद तेज़ी से विकास किया है और क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शक्ति बन गया है। भारत के साथ संबंधों की नई दिशा पर भी जोर दिया गया है, जिसमें सहयोग और साझेदारी के अवसर बढ़ रहे हैं。
बांग्लादेश का स्वतंत्रता दिवस न केवल उन बलिदानों और संघर्षों की याद दिलाता है, बल्कि यह आज के बांग्लादेश की पहचान को भी प्रस्तुत करता है, जहां नागरिक एक साथ मिलकर अपने देश की भलाई और विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं。
बांग्लादेश में सभ्यता का इतिहास काफी पुराना रहा है। आज के भारत का अंधिकांश पूर्वी क्षेत्र कभी बंगाल के नाम से जाना जाता था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार इस क्षेत्र में आधुनिक सभ्यता की शुरुआत ७०० इसवी ईसा पू. में आरम्भ हुआ माना जाता है। यहाँ की प्रारंभिक सभ्यता पर बौद्ध और हिन्दू धर्म का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। उत्तरी बांग्लादेश में स्थापत्य के ऐसे हजारों अवशेष अभी भी मौज़ूद हैं जिन्हें मंदिर या मठ कहा जा सकता है।
बंगाल का इस्लामीकरण मुगल साम्राज्य के व्यापारियों द्वारा १३ वीं शताब्दी में शुरु हुआ और १६ वीं शताब्दी तक बंगाल एशिया के प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र के रूप में उभरा। युरोप के व्यापारियों का आगमन इस क्षेत्र में १५ वीं शताब्दी में हुआ और अंततः १६वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा उनका प्रभाव बढ़ना शुरु हुआ। १८ वीं शताब्दी आते-आते  नियंत्रण पूरी तरह उनके हाथों में आ गया जो  पूरे भारत में फैल गया। जब स्वाधीनता आंदोलन के फलस्वरुप १९४७ में भारत स्वतंत्र हुआ तब राजनैतिक कारणों से  हिन्दू बहुल भारत और मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में विभाजित करना पड़ा। 
पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी, पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, जिसे पश्चिम पाकिस्तान कहा जाता था, जबकि पूर्व हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था, जिसे पूर्व पाकिस्तान कहा जाता था। हालांकि पूरबी भाग में राजनैतिक चेतना की कभी कमी नहीं रही लेकिन पूर्वी हिस्सा देश की सत्ता में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं पा सका एवं हमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबर्दस्त नाराजगी थी। और इसी नाराजगी के परिणाम स्वरुप उस समय पूर्व पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबर्दस्त विजय हासिल की। उनके दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया लेकिन बजाए उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के उन्हें जेल में डाल दिया गया। और यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी गई।
1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी।  उनके द्वारा 
किये गये  प्रयास  से स्थिति पूरी तरह बिगड़ गई। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान सेना एवं पुलिस की अगुआई में जबर्दस्त नरसंहार हुआ। पाकिस्तानी सेना में  पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबर्दस्त रोष हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली। पाकिस्तानी फौज  निरपराध, हथियार विहीन लोगों पर अत्याचार जारी रहा। जिससे लोगों का पलायन आरंभ हो गया जिसके कारण भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से लगातार अपील की कि पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारी जाए,  अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकर, बांग्लादेश को आजादी मे सहायता करने का निर्णय लिया।
 बांग्लादेश विश्व में आठवाँ सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जिसकी आबादी 16.4 करोड़ से अधिक है। भू-क्षेत्रफल में बांग्लादेश 92 वें स्थान पर है, जिसकी लम्बाई 148,460 वर्ग किलोमीटर (57,320 वर्ग मील) है, जो इसे सबसे घनी आबादी वाले देशों में से एक  है। 


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