उत्थान के प्रस्तावित प्रयासो से देश का कार्यबल नया आयाम प्राप्त करेगा ।
डा. मनीषा शुक्ला, महिला महाविद्यालय, किदवई नगर, कानपुर
कानपुर 22, मार्च, 202522, मार्च, 2025 नई दिल्लीराष्ट्रपति भवन का आधिकारिक ट्विटर अकाउंट और राष्ट्रपति के सचिवालय द्वारा संचालित की सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार
हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर है। आत्मनिर्भर होना, सही अर्थों में विकसित होना, बड़ी और वैज्ञानिक अर्थ-व्यवस्था की पहचान है। अनुसंधान और नवीनता पर आधारित आत्म-निर्भरता हमारे निर्धारक और अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाएगी। ऐसे अनुसंधान और नवप्रवर्तन को हरसंभव सहायता मिलनी चाहिए। विकसित अर्थ-व्यवस्था में शिक्षा-उद्योग-इंटरफ़ेस मजबूत दिखाई देता है। उद्योग जगत कार्य और उच्च शिक्षण अध्यापन में निरंतर अनुसंधान एवं अर्थ-व्यवस्था समाज की आवश्यकताओं से जुड़े हुए हैं। आपको समाज हित में औद्योगिक क्षेत्र केअनुभवी जनो से निरंतर विचार-विमर्श करने का प्रयास करना चाहिए। इससे शोध कार्य करने वाले इंजीनियरों और विद्यार्थियों का लाभ होगा। शिक्षण शिक्षण की कक्षाओं को स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक परंपराओं से जोड़ने का कार्य करना चाहिए। इन संदर्भों में आज की प्रस्तुति में अनुसंधान को उपयोगी बनाने की दृष्टि से, उच्च शिक्षा-अपराध में गहरी तकनीक और नवाचार पर आधारित स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने की सिफारिशें दी गई हैं। साथ ही, शोध को उपयोगी बनाने के लिए अन्य सुझाव भी दिए गए हैं। ऐसे सुझावों को कार्यरूप देने से हमारी प्रौद्योगिकी संचालित आत्म-निर्भरता हमारे उद्यमों और अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाएगी।
केंद्रीय वित्त मंत्री के 12 प्रमुख सुधार प्रस्तावित प्रयास
उक्त की निरन्तरता मे 21, मार्च, 2025 गुरुवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2.65 लाख करोड़ रुपये के 12 प्रमुख सुधार प्रस्तावित प्रयास घोषणा की है।। देश के सकल घरेलू उत्पाद का आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत आर्थिक मजबूती की दिशा में सरकार द्वारा 9 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद के बराबर आर्थिक सहायता और रिजर्व बैंक द्वारा कुल 29.87 लाख करोड़ रुपये लगभग 15% आर्थिक प्रोत्साहनकी घोषणा की जा चुकी है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों, व्यवसायों, मुद्रा ऋणकर्ताओं और व्यक्तिगत ऋणों (व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए ऋण) के लिए आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना का 31 मार्च, तक विस्तार किया गया है. कोविड-19 के कारण हेल्थकेयर सेक्टर और 26 संकटग्रस्त सेक्टरों के लिए क्रेडिट गारंटी सहायता योजना शुरू की जा रही है जिनका क्रेडिट बकाया 28 फरवरी, को 50 से 500 करोड़ रुपये तक था. बकाए का 20% तक अतिरिक्त क्रेडिट को चुकाने की अवधि 5 साल होगी, जिसमें प्रिंसिपल रिपेमेंट पर 1 साल का मोरेटोरियम शामिल होगा. यह योजना 31 मार्च, तक लागू है।
घरेलू विनिर्माण में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत दस सेक्टर एडवांस सेल केमिस्ट्री बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक / टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट्स, ऑटोमोबाइल्स एंड ऑटो कंपोनेंट्स, फार्मास्यूटिकल्स ड्रग्स, टेलीकॉम एंड नेटवर्किंग प्रोडक्ट्स, टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स, फूड प्रोडक्ट्स, हाई एफिशिएंसी सोलर पीवी मॉड्यूल्स, व्हाइट गुड्स (एसीएस एंड एलईडी) और स्पेशलिटी स्टील और चैंपियन सेक्टर को कवर किया जाएगा. इससे अर्थव्यवस्था, निवेश, निर्यात और रोजगार सृजन को बड़ा बढ़ावा मिलेगा. लगभग 1.5 लाख करोड़ की राशि अगले पांच वर्षों के लिए लगाई गई है.
व्यापार सुगमता और सरकारी ठेके से जुड़ी निर्माण और ढांचागत कंपनियों के लिए परफॉर्मेंस सिक्योरिटी को 5-10% से घटाकर 3% किया गया है. यह अनुबंधों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ठेकेदारों को भी बढ़ाएगा. निविदाओं के लिये अग्रिम जमा रकम को बिड सिक्योरिटी डिक्लेरेशन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा. यह छूट 31 दिसंबर तक के लिए होगी.
भारतीय विकास और आर्थिक सहायता योजना के अन्तर्गत निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक्जिम बैंक को 3,000 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया जा रहा है. यह एक्जिम बैंक को निर्यात को बढ़ावा देने के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट को सुविधाजनक बनाने और भारत से निर्यात को बढ़ावा देने में मदद करेगा.
कैपिटल और इंडस्ट्रियल व्यय के लिए 10,200 करोड़ रुपये के अतिरिक्त बजटीय आवंटन घरेलू डिफेंस इक्विपमेंट, इंडस्ट्रियल इंसेंटिव, इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्रीन एनर्जी के लिए कैपिटल एवं इंडस्ट्रियल व्यय होगा.
उक्त की निरन्तरता मे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की नई परिभाषा के अन्तर्गत 500 करोड़ रुपये तक के उद्योग मध्यम उद्योग हैं; यह परिवर्तन रोजगार सृजन, आर्थिक विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लक्ष्य के अन्तर्गत किया गया है।
नई परिभाषा के मुख्य बिंदु:
1. सूक्ष्म उद्यम:
निवेश सीमा: 1 करोड़ रुपये तक।
टर्नओवर सीमा: 5 करोड़ रुपये तक।
2. लघु उद्यम:
निवेश सीमा: 10 करोड़ रुपये तक।
टर्नओवर सीमा: 50 करोड़ रुपये तक।
3. मध्यम उद्यम:
- निवेश सीमा: 50 करोड़ रुपये तक।
- टर्नओवर सीमा: 500 करोड़ रुपये तक।
पुनरीक्षण के लाभ:
आर्थिक विकास: मध्यम श्रेणी की कंपनियों को ध्यान में रखते हुए, इससे उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा।
-रोजगार सृजन: अधिक कंपनियों को इस श्रेणी में लाने से रोजगार अवसरों में वृद्धि होगी।
सरकारी सहायता:सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के तहत आने वाली कंपनियों को विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा।
यह परिभाषा परिवर्तन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम है।
अब विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की परिभाषा को मानकीकृत कर दिया गया है। सूक्ष्म उद्योगों में 1 करोड़ रुपये का निवेश और 5 करोड़ रुपये का टर्नओवर, लघु उद्योगों में 10 करोड़ रुपये का निवेश और 50 करोड़ रुपये का टर्नओवर, और मध्यम उद्योगों में 20 करोड़ रुपये का निवेश और 100 करोड़ रुपये का टर्नओवर शामिल है। यह मानकीकरण उद्योगों को वर्गीकृत करने और नीतियों को लागू करने में मदद करेगा।
यह परिभाषा परिवर्तन सभी राज्यों में समान रूप से लागू है। केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की नई मानक परिभाषा पूरे देश में लागू कर उद्योगों को एक समान मानदंडों के तहत वर्गीकृत कर समान नीतिगत लाभ और विकास को बढ़ावा मिलेगा। इन परिभाषा परिवर्तन से कई महत्वपूर्ण लाभ होंगे:
1.सहायता और सब्सिडी का बेहतर लाभ: नई परिभाषाओं के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को सरकारी योजनाओं में बेहतर सहायता और सब्सिडी से आर्थिक मजबूती मिलेगी।
2. ऋण का सुगम व कम ब्याज दर पर मिलना: मानकीकरण के कारण बैंकों और वित्तीय संस्थानों को जोखिम मूल्यांकन में आसानी होगी, जिससे उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को ऋण प्रदान करना आसान होगा।
3. निवेश के अवसर: औपचारिक परिभाषाओं से निवेशकों का ध्यान सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों क्षेत्र की ओर आकर्षित व निवेश में वृद्धि होगी।
4.बाजारी पहुँच और प्रतिस्पर्धा: इन उद्योगों को गवर्नमेंट टेंडर्स और बड़े प्रोजेक्ट्स में भाग लेने की प्राथमिकता व बाजार पहुँच बढ़ेगी।
5. विकास और विस्तार के अवसर: नई तकनीकों को अपनाने में सक्षम, पहचान और समर्थन के कारण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकेंगी ।
6. विनियामक सरलता: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगो के मानकीकरण से व्यापार करने में होने वाली जटिलताओं में कमी संचालन में आसानी होगी।
ये लाभ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों क्षेत्र को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाएंगे, बल्कि उन्हें रोजगार सृजन में भी सहायक सिद्ध होंगे।
उद्योग संबंधी परिभाषाएँ समय के साथ कई कारण से बदल सकती हैं।
1. आर्थिक विकास: जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था विकसित होती है, निवेश और टर्नओवर के मानदंड परिवर्तन परिलक्ष्ति होता हैं।
2. महंगाई और बाजार के हालात: महंगाई दर, बाजार की मांग, और वैश्विक आर्थिक स्थितियों के आधार पर इन परिभाषाओं में संशोधन किया जाता है।
3. सरकारी नीतियां: सरकार समय-समय पर अपने औद्योगिक नीतियों को सुधारने के लिए परिभाषाओं को संशोधित कर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को और अधिक सक्षम और प्रतिस्पर्धी बनाती है ।।
4. प्रौद्योगिकी में परिवर्तन: प्रौद्योगिकी के विकास के साथ वर्तमान परिभाषाएँ पुरानी पड़ सकती नए उद्योगों का उदय होगा।
हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर है। आत्मनिर्भर होना, सही अर्थों में विकसित होना, बड़ी और वैज्ञानिक अर्थ-व्यवस्था की पहचान है। अनुसंधान और नवीनता पर आधारित आत्म-निर्भरता हमारे निर्धारक और अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाएगी। ऐसे अनुसंधान और नवप्रवर्तन को हरसंभव सहायता मिलनी चाहिए। विकसित अर्थ-व्यवस्था में शिक्षा-उद्योग-इंटरफ़ेस मजबूत दिखाई देता है। उद्योग जगत कार्य और उच्च शिक्षण अध्यापन में निरंतर अनुसंधान एवं अर्थ-व्यवस्था समाज की आवश्यकताओं से जुड़े हुए हैं। आपको समाज हित में औद्योगिक क्षेत्र केअनुभवी जनो से निरंतर विचार-विमर्श करने का प्रयास करना चाहिए। इससे शोध कार्य करने वाले इंजीनियरों और विद्यार्थियों का लाभ होगा। शिक्षण शिक्षण की कक्षाओं को स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक परंपराओं से जोड़ने का कार्य करना चाहिए। इन संदर्भों में आज की प्रस्तुति में अनुसंधान को उपयोगी बनाने की दृष्टि से, उच्च शिक्षा-अपराध में गहरी तकनीक और नवाचार पर आधारित स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने की सिफारिशें दी गई हैं। साथ ही, शोध को उपयोगी बनाने के लिए अन्य सुझाव भी दिए गए हैं। ऐसे सुझावों को कार्यरूप देने से हमारी प्रौद्योगिकी संचालित आत्म-निर्भरता हमारे उद्यमों और अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाएगी।
केंद्रीय वित्त मंत्री के 12 प्रमुख सुधार प्रस्तावित प्रयास
उक्त की निरन्तरता मे 21, मार्च, 2025 गुरुवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2.65 लाख करोड़ रुपये के 12 प्रमुख सुधार प्रस्तावित प्रयास घोषणा की है।। देश के सकल घरेलू उत्पाद का आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत आर्थिक मजबूती की दिशा में सरकार द्वारा 9 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद के बराबर आर्थिक सहायता और रिजर्व बैंक द्वारा कुल 29.87 लाख करोड़ रुपये लगभग 15% आर्थिक प्रोत्साहनकी घोषणा की जा चुकी है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों, व्यवसायों, मुद्रा ऋणकर्ताओं और व्यक्तिगत ऋणों (व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए ऋण) के लिए आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना का 31 मार्च, तक विस्तार किया गया है. कोविड-19 के कारण हेल्थकेयर सेक्टर और 26 संकटग्रस्त सेक्टरों के लिए क्रेडिट गारंटी सहायता योजना शुरू की जा रही है जिनका क्रेडिट बकाया 28 फरवरी, को 50 से 500 करोड़ रुपये तक था. बकाए का 20% तक अतिरिक्त क्रेडिट को चुकाने की अवधि 5 साल होगी, जिसमें प्रिंसिपल रिपेमेंट पर 1 साल का मोरेटोरियम शामिल होगा. यह योजना 31 मार्च, तक लागू है।
घरेलू विनिर्माण में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत दस सेक्टर एडवांस सेल केमिस्ट्री बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक / टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट्स, ऑटोमोबाइल्स एंड ऑटो कंपोनेंट्स, फार्मास्यूटिकल्स ड्रग्स, टेलीकॉम एंड नेटवर्किंग प्रोडक्ट्स, टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स, फूड प्रोडक्ट्स, हाई एफिशिएंसी सोलर पीवी मॉड्यूल्स, व्हाइट गुड्स (एसीएस एंड एलईडी) और स्पेशलिटी स्टील और चैंपियन सेक्टर को कवर किया जाएगा. इससे अर्थव्यवस्था, निवेश, निर्यात और रोजगार सृजन को बड़ा बढ़ावा मिलेगा. लगभग 1.5 लाख करोड़ की राशि अगले पांच वर्षों के लिए लगाई गई है.
व्यापार सुगमता और सरकारी ठेके से जुड़ी निर्माण और ढांचागत कंपनियों के लिए परफॉर्मेंस सिक्योरिटी को 5-10% से घटाकर 3% किया गया है. यह अनुबंधों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ठेकेदारों को भी बढ़ाएगा. निविदाओं के लिये अग्रिम जमा रकम को बिड सिक्योरिटी डिक्लेरेशन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा. यह छूट 31 दिसंबर तक के लिए होगी.
भारतीय विकास और आर्थिक सहायता योजना के अन्तर्गत निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक्जिम बैंक को 3,000 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया जा रहा है. यह एक्जिम बैंक को निर्यात को बढ़ावा देने के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट को सुविधाजनक बनाने और भारत से निर्यात को बढ़ावा देने में मदद करेगा.
कैपिटल और इंडस्ट्रियल व्यय के लिए 10,200 करोड़ रुपये के अतिरिक्त बजटीय आवंटन घरेलू डिफेंस इक्विपमेंट, इंडस्ट्रियल इंसेंटिव, इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्रीन एनर्जी के लिए कैपिटल एवं इंडस्ट्रियल व्यय होगा.
उक्त की निरन्तरता मे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की नई परिभाषा के अन्तर्गत 500 करोड़ रुपये तक के उद्योग मध्यम उद्योग हैं; यह परिवर्तन रोजगार सृजन, आर्थिक विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लक्ष्य के अन्तर्गत किया गया है।
नई परिभाषा के मुख्य बिंदु:
1. सूक्ष्म उद्यम:
निवेश सीमा: 1 करोड़ रुपये तक।
टर्नओवर सीमा: 5 करोड़ रुपये तक।
2. लघु उद्यम:
निवेश सीमा: 10 करोड़ रुपये तक।
टर्नओवर सीमा: 50 करोड़ रुपये तक।
3. मध्यम उद्यम:
- निवेश सीमा: 50 करोड़ रुपये तक।
- टर्नओवर सीमा: 500 करोड़ रुपये तक।
पुनरीक्षण के लाभ:
आर्थिक विकास: मध्यम श्रेणी की कंपनियों को ध्यान में रखते हुए, इससे उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा।
-रोजगार सृजन: अधिक कंपनियों को इस श्रेणी में लाने से रोजगार अवसरों में वृद्धि होगी।
सरकारी सहायता:सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के तहत आने वाली कंपनियों को विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा।
यह परिभाषा परिवर्तन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम है।
अब विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की परिभाषा को मानकीकृत कर दिया गया है। सूक्ष्म उद्योगों में 1 करोड़ रुपये का निवेश और 5 करोड़ रुपये का टर्नओवर, लघु उद्योगों में 10 करोड़ रुपये का निवेश और 50 करोड़ रुपये का टर्नओवर, और मध्यम उद्योगों में 20 करोड़ रुपये का निवेश और 100 करोड़ रुपये का टर्नओवर शामिल है। यह मानकीकरण उद्योगों को वर्गीकृत करने और नीतियों को लागू करने में मदद करेगा।
यह परिभाषा परिवर्तन सभी राज्यों में समान रूप से लागू है। केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की नई मानक परिभाषा पूरे देश में लागू कर उद्योगों को एक समान मानदंडों के तहत वर्गीकृत कर समान नीतिगत लाभ और विकास को बढ़ावा मिलेगा। इन परिभाषा परिवर्तन से कई महत्वपूर्ण लाभ होंगे:
1.सहायता और सब्सिडी का बेहतर लाभ: नई परिभाषाओं के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को सरकारी योजनाओं में बेहतर सहायता और सब्सिडी से आर्थिक मजबूती मिलेगी।
2. ऋण का सुगम व कम ब्याज दर पर मिलना: मानकीकरण के कारण बैंकों और वित्तीय संस्थानों को जोखिम मूल्यांकन में आसानी होगी, जिससे उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को ऋण प्रदान करना आसान होगा।
3. निवेश के अवसर: औपचारिक परिभाषाओं से निवेशकों का ध्यान सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों क्षेत्र की ओर आकर्षित व निवेश में वृद्धि होगी।
4.बाजारी पहुँच और प्रतिस्पर्धा: इन उद्योगों को गवर्नमेंट टेंडर्स और बड़े प्रोजेक्ट्स में भाग लेने की प्राथमिकता व बाजार पहुँच बढ़ेगी।
5. विकास और विस्तार के अवसर: नई तकनीकों को अपनाने में सक्षम, पहचान और समर्थन के कारण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकेंगी ।
6. विनियामक सरलता: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगो के मानकीकरण से व्यापार करने में होने वाली जटिलताओं में कमी संचालन में आसानी होगी।
ये लाभ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों क्षेत्र को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाएंगे, बल्कि उन्हें रोजगार सृजन में भी सहायक सिद्ध होंगे।
उद्योग संबंधी परिभाषाएँ समय के साथ कई कारण से बदल सकती हैं।
1. आर्थिक विकास: जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था विकसित होती है, निवेश और टर्नओवर के मानदंड परिवर्तन परिलक्ष्ति होता हैं।
2. महंगाई और बाजार के हालात: महंगाई दर, बाजार की मांग, और वैश्विक आर्थिक स्थितियों के आधार पर इन परिभाषाओं में संशोधन किया जाता है।
3. सरकारी नीतियां: सरकार समय-समय पर अपने औद्योगिक नीतियों को सुधारने के लिए परिभाषाओं को संशोधित कर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को और अधिक सक्षम और प्रतिस्पर्धी बनाती है ।।
4. प्रौद्योगिकी में परिवर्तन: प्रौद्योगिकी के विकास के साथ वर्तमान परिभाषाएँ पुरानी पड़ सकती नए उद्योगों का उदय होगा।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के उत्थान के प्रस्तावित प्रयासो से देश का कार्यबल नया आयाम प्राप्त करेगा ।
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