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Showing posts with label माननीय कांशीराम जी को उनकी जयंती पर सादर श्रद्धांजलि. Show all posts
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कांशीराम जी को सरकारी सेवा में काम करते हुये जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा । डॉक्टर अंबेडकर की किताब "एनीहिलेशन ऑफ कास्ट" पढ़कर समस्त समाज को समर्पित जागरूकता बढ़ाई।

आधुनिक भारत में कांशीराम दलित राजनीति को आकार देने वाले दिग्गज नेता
1981 में कांशीराम ने डीएस4 और 1984 में बीएसपी का गठन
"अंबेडकर ऑन व्हील्स" कार्यक्रम का संचालन
कांशीराम ने देश को पहली दलित महिला मुख्यमंत्री देकर सामाजिक क्रांति ला दी थी.
उनका योगदान भारत के समस्त समाज के लिए समर्पित महत्वपूर्ण मील का पत्थर

कानपुर 15, मार्च, 2025
14, मार्च, 2025 बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को उनकी 91वीं जयंती के अवसर पर याद किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर अनवरत पोस्ट आ रहे है । लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लिखा कि ‘दलितों, वंचितों और शोषितों के अधिकारों के लिए उनका संघर्ष सामाजिक न्याय की लड़ाई में हर कदम पर हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा. महान समाज सुधारक माननीय कांशीराम जी को उनकी जयंती पर सादर श्रद्धांजलि’.
कांशीराम दलित अस्मिता और उनके राजनीतिक उत्थान के लिए महत्वपूर्ण भारतीय राजनीति के एक विशिष्ट नेता रहे हैं । उनका जीवन और कार्य भारतीय दलित राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला था। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की स्थापना कर दलितों के लिए एक सशक्त राजनीतिक आवाज़ बने।
कांशीराम की विरासत आज भी जीवित है और बीएसपी के माध्यम से राजनीति में उनकी सोच का प्रभाव देखा जा सकता है। उनका योगदान भारत के समस्त समाज के लिए समर्पित महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के एक दलित परिवार में हुआ। उन्हें जीवन में सरकारी सेवा में काम करते हुये जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा । उन्होंने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की किताब "एनीहिलेशन ऑफ कास्ट" पढ़कर दलितों की समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाई।
1981 में कांशीराम ने 'दलित शोषित समाज संघर्ष समिति' (डीएस4) की स्थापना की और 1984 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का गठन किया। इस पार्टी के माध्यम से उन्होंने दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के बीच राजनीतिक एकता को बढ़ावा दिया।
कांशीराम ने सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए "अंबेडकर ऑन व्हील्स" कार्यक्रम का संचालन किया, जिसमें अंबेडकर के विचारों का प्रचार किया गया। उन्होंने दलितों को संगठित करने के लिए कई आंदोलन चलाए और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई।
कांशीराम के नेतृत्व में बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में दलितों को राजनीतिक शक्ति दी। उन्होंने कहा कि "राजनीतिक सत्ता ही हर ताले की कुंजी है", के सिद्धांत को अपनाते हुए मायावती को मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त किया।
कांशीराम की विरासत, जिन्होंने दलित अस्मिता को मजबूत किया कांशीराम ने देश को पहली दलित महिला मुख्यमंत्री देकर सामाजिक क्रांति ला दी थी. कांशीराम ने मायावती को अपनी राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया, और उनके नेतृत्व में बीएसपी ने दलितों को सत्ता में पहुंचाने का कार्य किया। मायावती की मुख्यमंत्री के रूप में पहली नियुक्ति ने दलित वोटों में एक नई पहचान बनाई।
कांशीराम का दृष्टिकोण राजनीतिक पार्टी के साथ व्यापक सामाजिक क्रांति का सपना देखा था।। उनके अनुसार, दलितों को अधिकारों के लिए लड़ने के साथ समाज के अन्य वर्गों के साथ एकीकृत होकर आगे बढ़ना चाहिए। व एकजुट होकर अपनी आवाज़ उठानी होगी, तब जाकर वे अपने अधिकारों की प्राप्ति कर सकेंगे। कांशीराम की विरासत, जिन्होंने दलित अस्मिता को मजबूत किया कांशीराम ने देश को पहली दलित महिला मुख्यमंत्री देकर सामाजिक क्रांति ला दी थी. उनके विचार किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं हैं
कांशीराम ने भारत को पहली दलित महिला मुख्यमंत्री मायावती देकर सामाजिक क्रांति ला दी। उनके विचार एक पार्टी तक सीमित नहीं हैं। दलित अपने अधिकारों के साथ बड़े पैमाने पर सामाजिक एकीकरण के लिए लड़ रहे हैं।
आंबेडकर के बाद के राजनीतिक विमर्श के उदय के साथ ही इस दौर में दलित राजनीति में भी बदलाव आया. इसने जाति, पूंजी और सहमति के उन्हीं सामाजिक साधनों का इस्तेमाल किया जो दलित उत्पीड़न के संसाधन थे।
लोकतांत्रिक राजनीति के बदलते आयामों से लेकर मंडल आयोग की रिपोर्ट तक, आर्थिक उदारीकरण से लेकर राम मंदिर तक, 1980 और 90 के दशक जीवंत समय थे, जो नए आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संरचनाओं द्वारा चिह्नित थे। यह राम विलास पासवान और कांशीराम जैसे बड़े नेताओं का दौर था, जिन्होंने दलितों की राजनीतिक पहचान को मजबूत करके, उनकी आर्थिक पहचान को विकसित करके और उनकी सामाजिक पहचान को फिर से स्थापित करके एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
आधुनिक भारत में कांशीराम दलित राजनीति को आकार देने वाले दिग्गज नेता के रूप में सामने आते हैं. उन्होंने दलितों को आवाज दी और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी संघ (बामसेफ) दिया. आज, उन्हें एक करिश्माई सज्जन के रूप में याद किया जाता है, जो अपनी सादगी और नारेबाजी की कला के लिए जाने जाते हैं।

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