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भारत विधि आयोग ने संविदात्मक आधार पर विधि सलाहकार के 12 पदो के लिए आवेदन आमंत्रित किए आवेदन की तिथि: 4 जून 2025 से 18 जून 2025 तक

भारत विधि आयोग ने 12 संविदात्मक विधि सलाहकार 12 पदो लिए आवेदन आमंत्रित किए
आयु सीमा: अधिकतम 32 वर्ष
आवश्यक योग्यता और अनुभव: मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से एलएलबी डिग्री, उत्कृष्ट शोध कौशल, अंग्रेजी में बोलने और लिखने की क्षमता।
आवेदन की तिथि: 4 जून 2025 से 18 जून 2025 तक।
कानपुर:13 जून 2025
12 जून, 2025, नई दिल्ली:भारत विधि आयोग ने संविदात्मक आधार पर विधि सलाहकार के पद के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। यह आयोगभारत सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय के तहत कार्य करता है एवं कानूनी सुधारों के लिए अध्ययन और सिफारिशें प्रस्तुत करता है। इसके सदस्यों में मुख्यतः कानून के विशेषज्ञ शामिल होते हैं. पद का नाम: विधिक सलाहकार (एएलआईओ)
पद का नाम: कानूनी सलाहकार
पदों की संख्या: 12 (बारह)
आयु सीमा: 32 वर्ष
आवश्यक योग्यता और अनुभव :
उम्मीदवार के पास किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से एलएलबी डिग्री
उम्मीदवार के पास अच्छा शोध कौशल होना चाहिए।
उम्मीदवार के पास अंग्रेजी बोलने और लिखने का अच्छा कौशल होना चाहिए।
6. आवेदन की तिथि: 4 जून 2025 से 18 जून 2025 तक.
7. आवेदन की प्रक्रिया: इच्छुक उम्मीदवारों को आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार आवेदन करना होगा, जिसमें पात्रता, चयन प्रक्रिया, वेतनमान आदि की जानकारी शामिल होगी. विधिक सलाहकारों का कार्य आवश्यक कानूनी सिफारिशें प्रदान करना और विधि आयोग के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान करना होगा। सलाहकारों को सरकार को सुधारों, कानूनों की समीक्षा और विकासात्मक सिफारिशें देने का अवसर प्राप्त होगा.
इसके लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों को विशिष्ट शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव होना आवश्यक है, जिसमें कानून के क्षेत्र में विशेषज्ञता शामिल है। विवरण आधिकारिक अधिसूचना में उपलब्ध होगा.
आवेदन प्रक्रिया और अन्य आवश्यकताओं के बारे में अधिक जानकारी यहाँ देखी जा सकती है.
यह अवसर कानूनी पेशेवरोंजो विधिक सलाह देने में रुचि रखते हैं और जो भारत में कानून के सुधार में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं।
भारतीय विधि आयोग  भारत सरकार के आदेश से गठित एक कार्यकारी निकाय है। इसका प्रमुख कार्य है, कानूनी सुधारों हेतु कार्य करना।
आयोग का गठन एक निर्धारित अवधि के लिये होता है और यह विधि और न्याय मंत्रालय के लिये परामर्शदाता निकाय के रूप में कार्य करता है।
इसके सदस्य मुख्यतः कानून विशेषज्ञ होते हैं।
पिछले 300 या इससे अधिक वर्षों के दौरान कानूनी सुधार एक सतत प्रक्रिया  है। प्राचीन समय में जब धार्मिक और प्रथागत कानून का बोलबाला था तो सुधार प्रक्रिया तदर्थ थी और उन्हें यधोचित रूप से गठित विधि सुधार एजेंसियों द्वारा संस्थागत नहीं किया जाता था।
 उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से समय-समय पर सरकार द्वारा विधि आयोग गठित किये गए और कानून की उन शाखाओं में जहाँ सरकार को आवश्यकता महसूस हुई, वहाँ स्पष्टीकरण, समेकन और संहिताकरण हेतु विधायी सुधारों की सिफारिश करने के लिये उन्हें सशक्त किया गया।
प्रथम आयोग वर्ष 1834 में 1833 के चार्टर एक्ट के तहत लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में गठित किया गया था जिसने दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता को संहिताबद्ध करने की सिफ़ारिश की।
इसके बाद द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ विधि आयोग, जो क्रमशः वर्ष 1853, 1861 और 1879 में गठित किये गए थे, ने 50 वर्ष की अवधि में उस समय प्रचलित अंग्रेजी क़ानूनों के पैटर्न पर, जिन्हें कि भारतीय दशाओं के अनुकूल किया गया था, की व्यापक किस्मों से भारतीय विधि जगत को समृद्ध किया।
भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय संविदा अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम आदि प्रथम चार विधि आयोगों का परिणाम हैं।
स्वतंत्रता के बाद की गतिविधियाँस्वतंत्रता के बाद संविधान ने अनुच्छेद 372 के तहत संविधान पूर्व कानूनों को तब तक जारी रखना तय किया जब तक कि उनमें संशोधन न हो जाए या उन्हें रद्द न किया जाए ।
देश की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप सेवा करने हेतु विरासत में प्राप्त कानूनों में सुधार और उनको अद्यतन करने की सिफ़ारिश करने के लिये संसद के अंदर और बाहर एक केंद्रीय विधि आयोग गठित करने की मांग थी।
भारत सरकार ने स्वतंत्र भारत का प्रथम विधि आयोग वर्ष 1955 में भारत के तत्कालीन अटॉर्नी जनरल एम.सी. सीतलवाड की अध्यक्षता में गठित किया। तब से 21 से अधिक विधि आयोग गठित किये जा चुके हैं जिनमें से प्रत्येक का कार्यकाल 3 वर्ष था।वर्ष 2020 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीन साल की अवधि के लिये भारत के 22वें विधि आयोग के गठन को मंज़ूरी दी।

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