मजिस्ट्रेट के पास सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज करने का विवेकाधिकार
याचिकाकर्ता द्वारा यह तर्क दिया गया था कि ट्रायल कोर्ट ने धारा 313 बयान दर्ज करने में त्रुटि की है और उसे धारा 313 बयान सुरक्षित और दर्ज करना चाहिए था। चूंकि, उन्हें खुद का बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया गया है और अगर उन्होंने खुद का बचाव करने का अवसर दिया जाता तो परिणाम अन्यथा होगा और इस तरह प्रक्रिया का पालन करने के लिए मामले को ट्रायल कोर्ट को भेज दिया।
रिकॉर्ड देखने के बाद पीठ ने कहा कि पुनरीक्षण याचिकाकर्ता ने नोटिस और संज्ञान लिए जाने के बाद भी कोई जवाब नहीं दिया और उसे समन जारी किया गया था, लेकिन उसने पेश होने का विकल्प नहीं चुना और इसलिए गैर-जमानती वारंट जारी किया गया और उसके बाद वह अदालत के समक्ष पेश हुआ और जमानत प्राप्त की।
इसके अलावा, गवाह से जिरह करने का अवसर दिया गया था, लेकिन उसने जिरह नहीं की, इसलिए अदालत ने इसे कोई क्रॉस नहीं माना और धारा 313 के बयान दर्ज करने चाहिये। इसके बाद याचिकाकर्ता ने दो बार गवाहों को वापस बुलाने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया, जिसे अनुमति दी गई, फिर भी उसने गवाहों से जिरह नहीं की या बचाव पक्ष मे साक्ष्य प्राप्त नही किये । इसके बाद, अदालत ने धारा 313 बयान को छोड़ दिया और आक्षेपित आदेश पारित किया।