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कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष और सांसद सोनिया गांधी भारत को एक समग्र सभी स्तरों पर अभिप्रेरित और सामंजस्यपूर्ण समावेशी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है।

सार्वजनिक सेवा की भावना से मुक्त भारतीय शिक्षाकेंद्र सरकार के साथ सत्ता का केंद्रीकरण,
निजी क्षेत्र में शिक्षा में निवेश का व्यावसायीकरण और
आउटसोर्सिंग, पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रम और संस्थानों का सांप्रदायिकरण.
विश्वविद्यालयों में खराब शिक्षण और गुणवत्ता वाले शासन-अनुकूल विचारधारा की मनमानी नियुक्ति
कानपुर 1 अप्रैल 2025
31, मार्च, 2025 नई दिल्ली
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष और सांसद सोनिया गांधी ने 'आज भारतीय शिक्षा को प्रभावित करने वाले 3सी' शीर्षक लेख में भारतीय शिक्षा व्यवस्था की चुनौतियों और सरकारी नीतियों पर गहरा विचार प्रस्तुत किया है। सोनिया गांधी के अनुसार भारतीय शिक्षा को ‘3सी’ का सामना करना पड़ रहा है – केंद्रीकरण, कमर्शियलाइजेशन और कम्युनिलिज्म. केंद्र की सरकार देश के शैक्षिक ढांचे को कमजोर कर “नुकसानदेह नतीजों की ओर ले जाने वाले एजेंडे” पर चल रही है. यह पिछले एक दशक में केंद्र सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि शिक्षा में तीन मुख्य एजेंडा - केंद्र सरकार के साथ सत्ता का केंद्रीकरण, निजी क्षेत्र में शिक्षा में निवेश का व्यावसायीकरण और आउटसोर्सिंग, पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रम और संस्थानों का सांप्रदायिकरण.” का सफल कार्यान्वयन है
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की आलोचना कर लिखती है , “हाई-प्रोफाइल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 भारत के बच्चों और युवाओं की शिक्षा के प्रति बेहद उदासीन है. व सरकार की वास्तविकता को छिपा दिया है सरकार समग्र शिक्षा अभियान के तहत मिलने वाले अनुदान को रोककर राज्य सरकारों को मॉडल स्कूलों की पीएम-श्री योजना को लागू करने के लिए मजबूर कर रही है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णयों में राज्य सरकारों को बाहर रखने का आरोप लगाया कि एक राष्ट्रीय नीति के निर्माण में स्थानीय आवश्यकताओं और राज्यों की विशिष्टताओं का समावेश होना आवश्यक है।
सोनिया गांधी केअनुसार केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड, जिसमें केंद्रीय और राज्य शिक्षा मंत्री शामिल होते हैं, की बैठकें सितंबर 2019 से आयोजित नहीं की गई हैं।. उन्होंने सरकार पर राज्यों से परामर्श न करने और उनके विचारों पर विचार न करने का आरोप लगाया है.यह नीति निर्माण में संवाद और सहयोग की कमी है। राज्य सरकारों की अनुपस्थिति से स्पष्ट है कि शिक्षा संबंधी निर्णय स्थानीय संदर्भों की उपेक्षा कर रहे हैं, जो लंबे समय में भारतीय शिक्षा प्रणाली के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
“एनईपी 2020 के माध्यम से शिक्षा में प्रतिमान बदलाव को अपनाने और लागू करने के दौरान केंद्र सरकार ने इन नीतियों के कार्यान्वयन पर सरकार की जिद का प्रमाण है कि वह अपने अलावा किसी और की आवाज नहीं सुनती, यहां तक कि ऐसे विषय पर भी जो भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में है.
पिछले एक दशक में शिक्षा प्रणालियों को व्यवस्थित रूप से “सार्वजनिक सेवा की भावना से मुक्त कर दिया गया है और शिक्षा नीति को शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच के बारे में किसी भी चिंता से मुक्त कर दिया गया है.”
संवाद की कमी के साथ-साथ “धमकाने की प्रवृत्ति” भी बढ़ी है पीएम-श्री (या पीएम स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया) योजना खुलेआम शिक्षा प्रणाली का व्यावसायीकरण है
हमने देश मे “2014 से, हमने देश भर में 89,441 सरकारी स्कूलों को बंद और और 42,944 अतिरिक्त निजी स्कूलों की स्थापना की गई है. देश के गरीबों को सरकारी शिक्षा से बाहर कर दिया गया है और उन्हें बेहद महंगी तथा कम विनियमित निजी स्कूल व्यवस्था के हाथों में धकेल दिया गया है.” उन्होंने यह भी कहा कि उच्च शिक्षा में केंद्र ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ब्लॉक अनुदान की पूर्ववर्ती प्रणाली के स्थान पर उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (हेफा) की शुरुआत की है.
“विश्वविद्यालयों को हेफा से बाजार ब्याज दरों पर ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिसे उन्हें अपने स्वयं के राजस्व से चुकाना होगा. अनुदान की मांग पर अपनी 364वीं रिपोर्ट में, शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने पाया कि इन ऋणों का 78% से 100% हिस्सा विश्वविद्यालयों द्वारा छात्र शुल्क के माध्यम से चुकाया जा रहा है. सार्वजनिक शिक्षा के वित्तपोषण से सरकार के पीछे हटने की कीमत छात्रों को फीस वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है.
केंद्र सरकार का तीसरा जोर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की लंबे समय से चली आ रही वैचारिक परियोजना शिक्षा प्रणाली के माध्यम से नफरत पैदा करना और उसे बढ़ावा देना सांप्रदायिकता पर है . राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पाठ्यपुस्तकों को भारतीय इतिहास को संशोधित किया जा रहा है.
“महात्मा गांधी की हत्या और मुगल भारत पर अनुभागों को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया था उसे जनता के विरोध के कारण सरकार को अनिवार्य रूप से शामिल करने के लिए बाध्य होना पड़ा.
विश्वविद्यालयों में खराब शिक्षण और छात्रवृत्ति की गुणवत्ता वाले शासन-अनुकूल विचारधारा पृष्ठभूमि के प्रोफेसरों की बड़े पैमाने पर मनमानी नियुक्ति की जा रही है , पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के मंदिर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और भारतीय प्रबंधन संस्थानों में प्रमुख संस्थानों में शीर्ष पद सांप्रदायिक विचारधारा वालों के लिए आरक्षित कर दिया गया है.
शिक्षा क्षेत्र मे सामूहिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। मात्र केंद्र का दृष्टिकोण अपनाने से नीति निर्माण का यह तंत्र एकतरफा होगा जिसका व्यापक प्रभाव शिक्षा की गुणवत्ता और सर्वसमावेशिता पर पड़ेगा। सोनिया गांधी का यह सिद्धांत कि शिक्षा के क्षेत्र में सभी स्तरों पर विचार-विमर्श होना चाहिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत को एक समग्र सभी स्तरों पर अभिप्रेरित और सामंजस्यपूर्ण समावेशी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है।

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