https://www.canva.com/design/DAGV7dS4xDA/LuuDh4LOA2wcvtaTyYmIig/edit?utm_content=DAGV7dS4xDA&utm_campaign=designshare&utm_medium=link2&utm_source=sharebutton

Search This Blog

Law Logic Learner

तलाक तलाक तलाक खातून शाहबानों प्रकरण और राममंदिर आंदोलन के कारण 1984 में दो सीटों वाली BJP 1989 में 85 सीटों वाली पार्टी बन गयी.

शादी के 43 साल बाद 1975 में  "तलाक तलाक तलाक" बोलकर घर से निकाल दिया

न्याय चर्च, मंदिर, मस्जिद या बौद्ध मठ में नही मिलता. न्याय न्यायालय में मिलता है
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पार्लियामेंट में ऑर्डिनेंस ला सुप्रीम कोर्ट के फैसले को  से पलट दिया 
पांच जजों की बेंच ने खातून शाहबानों के हक़ में फ़ैसला सुनाया
सेक्शन 125 CRPC के तहत महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार

सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार 
कानपुर:27 मार्च 2025
26 मार्च 2025 
Kranti Kumar@KraantiKumar 4h
खातून शाहबानों, नाम तो सुना होगा. खातून शाहबानों से गुफाओं के दौर का कानून कांप उठा. कहानी उस महिला की जिसे 20 रुपए गुजारा भत्ता मिलने पर छाती पीट पीटकर सड़कों पर जुलूस निकाला गया. ◆◆◆ खातून शाहबानों का विवाह एडवोकेट मोहम्मद अहमद खान से 1932 में हुआ था. शादी के 43 साल बाद 1975 में एक दिन शौहर मोहम्मद अहमद खान ने अपनी बेगम खातून शाहबानों को तीन बार "तलाक तलाक तलाक" बोलकर घर से निकाल दिया. उस बुजुर्ग महिला को अपने बच्चों के साथ ससुराल वाले घर को छोड़ना पड़ा. खातून शाहबानों अब न्याय चाहिए था. न्याय मस्जिद में मिलता है, नही. न्याय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में मिलता है, नही. न्याय किसी मुल्ला की महफ़िल में मिलता है, नही. न्याय चर्च, मंदिर, मस्जिद या बौद्ध मठ में नही मिलता. न्याय न्यायालय में मिलता है. ◆◆◆ 1978 में खातून शाहबानों ने न्याय के लिए इंदौर के न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. शाहबानों की मांग थी उनका पूर्व शौहर एडवोकेट मोहम्मद अहमद खान की वार्षिक आय 60,000 रुपए है. इस लिहाज से मुझे केवल 500 रुपए मासिक गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. इंदौर की न्यायपालिका ने दोनों पक्षों को ध्यान से सुना. और 1979 में फैसला दिया मोहम्मद अहमद खान को 20 रुपया मासिक गुजारा भत्ता खातून शाहबानों को देना चाहिए. खातून शाहबानों ने मध्यप्रदेश हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उच्च न्यायालय ने 179 रुपए गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया. ◆◆◆ इस फैसले को मोहम्मद अहमद खान ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया. खान साहब के पास केस लड़ने के लिए बहुत पैसा था. लेकिन अपनी पूर्व बेगम को 179 रुपए देने के लिए पैसा नही था. सुप्रीम कोर्ट में मोहम्मद अहमद खान साहब के पक्ष में भारत के मुल्ला मौलवी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मैम्बर आकर खड़े हो गए. और कहा यह हमारे धर्म का आंतरिक मसला है. गुजारा भत्ता केवल इद्दत के दौरान दिया जा सकता है जो केवल तलाक के बाद तीन महीनों तक लागू रहता है. इद्दत की समय सीमा के बाद गुजारा भत्ता देने का सवाल ही पैदा नही होता. ◆◆◆ सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने खातून शाहबानों मामले को कानूनी विधि विधान अनुसार बहुत ही अतिमहत्वपूर्ण मामला मानकर पांच जजों की बड़ी बेंच को रेफेर कर दिया. बड़ी बेंच की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने किया, जो वर्तमान चीफ जस्टिस के पिता हैं. पांच जजों की बेंच ने खातून शाहबानों के हक़ में फ़ैसला सुनाया. 179 रुपए गुजारा भत्ता बरकरार रखा और 10,000 रुपए अतिरिक्त पैसा देने का आदेश दिया. और कहा सेक्शन 125 CRPC के तहत महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है. इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रवैये की निंदा की. पर्सनल धार्मिक कानूनों में समय अनुसार बदलाव होना चाहिए. और कहा संविधान के अनुच्छेद 44 को भी चर्चा में लाया जाए. जो देश में समान नागरिक सहिंता की परिकल्पना करता है. ◆◆◆ खातून शाहबानों को 179 रुपए मासिक गुजारा भत्ता मिलने के अधिकार के साथ इस्लाम खतरे में आ गया. ऐसा मैं नही, उस समय के मुल्ला मौलवी, मुस्लिम नेता और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कह रहा था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पसमांदा मुसलमानों को भड़का कर सड़कों जुलूस निकाला गया जिसका नेतृत्व अशरफ मुसलमानों ने किया. कांग्रेस घबरा गई. इतनी घबरा गई की बुखार आ गया. मुसलमानों को खुश करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पार्लियामेंट में ऑर्डिनेंस लाया, और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पुरुष सांसदों के वोटों से पलट दिया गया. एक बूढ़ी महिला को जीवन यापन करने के लिए मिला 179 रुपए का गुजारा भत्ता निरस्त हो गया. ◆◆◆ कांग्रेस में आरिफ खान अकेला ऐसे नेता थे जो खातून शाहबानों के पक्ष में थे. उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और आज तक अपने फैसले पर कायम हैं. खातून शाहबानों मामले ने 1951 से ICU में पड़ी BJP को नया जीवनदान यानी ऑक्सिजन दिया. कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को खुश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने से हिन्दू आबादी नाराज थी. इस नाराजगी ने BJP को खाद पानी दिया. 1984 में दो सीटों वाली BJP 1989 में राममंदिर आंदोलन और खातून शाहबानों मामले की वजह से 85 सीटों वाली पार्टी बन गयी.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144, कुछ परिवर्तनों के साथ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के समरूप है।
यदि किसी व्यक्ति के पास पर्याप्त साधन हैं और वह निम्नलिखित में से किसी का भरण-पोषण नहीं करता या करने से मना करता है—उसकी पत्नी, जो अपना भरण-पोषण स्वयं नहीं कर सकती,
उसकी धर्मज या अधर्मज संतान, चाहे विवाहित हो या नहीं, जो अपना भरण-पोषण स्वयं नहीं कर सकती,
उसकी धर्मज या अधर्मज संतान (जो विवाहित पुत्री नहीं है) और वयस्क है, लेकिन किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता के कारण अपना भरण-पोषण स्वयं नहीं कर सकती,
उसके माता-पिता, जो अपना भरण-पोषण स्वयं नहीं कर सकते,
तो प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट को, इस उपेक्षा या इनकार के साबित होने पर, उस व्यक्ति को निर्देश देने का अधिकार है कि वह अपनी पत्नी, संतान या माता-पिता को भरण-पोषण के लिए एक निश्चित मासिक राशि के रूप में भत्ता दे। यह राशि मजिस्ट्रेट की राय के अनुसार तय की जाएगी, और इसे उसी व्यक्ति को दिया जाएगा जिसे मजिस्ट्रेट समय-समय पर तय करेगा।
परंतु, मजिस्ट्रेट खंड (b) में निर्दिष्ट उस पुत्री के पिता को, जिसकी पुत्री का भरण-पोषण उसकी जिम्मेदारी है, आदेश दे सकता है कि वह अपनी पुत्री को तब तक भत्ता दे जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती। यह आदेश तब दिया जा सकता है जब मजिस्ट्रेट को यह लगे कि पुत्री के पास, यदि वह विवाहित है, तो उसके पति के पास पर्याप्त साधन नहीं हैं।
परंतु यह और कि यदि भरण-पोषण के मासिक भत्ते के संबंध में कार्यवाही चल रही है, तो मजिस्ट्रेट यह आदेश दे सकता है कि व्यक्ति अपनी पत्नी, संतान, पिता या माता के अंतरिम भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता दे। इसके अलावा, उस कार्यवाही में जो भी खर्च होगा, वह भी मजिस्ट्रेट द्वारा उचित समझे जाने पर उस व्यक्ति को देना होगा, और इसे उन व्यक्तियों को दिया जाएगा जिन्हें मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देशित करेगा।
परंतु, दूसरे परंतुक के अनुसार, अंतरिम भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ते और कार्यवाही के खर्चों के लिए किए गए किसी भी आवेदन का निपटारा, जहां तक संभव हो, आवेदन की सूचना उस व्यक्ति को तामील होने की तारीख से 60 दिन के भीतर कर दिया जाएगा।
स्पष्टीकरण: इस अध्याय के उद्देश्यों के लिए “पत्नी” में वह महिला भी शामिल है, जिसका उसके पति से तलाक हो चुका है या जिसने अपने पति से तलाक लिया है और जिसने फिर से विवाह नहीं किया है।
 बीएनएसएस 144(2)
भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए दिया जाने वाला कोई भी भत्ता और कार्यवाही का खर्च, आदेश की तारीख से देय होगा। और, यदि कोई आदेश दिया जाता है, तो भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण और कार्यवाही के खर्च के लिए आवेदन की तारीख से, जैसा उपयुक्त हो, वह देय माने जाएंगे।
 बीएनएसएस 144(3)
यदि कोई व्यक्ति जिसे ऐसा आदेश दिया गया हो, उस आदेश का पालन करने में बिना पर्याप्त कारण के असफल रहता है, तो उस आदेश के प्रत्येक उल्लंघन के लिए कोई मजिस्ट्रेट देय राशि के वसूली के लिए एक वारंट जारी कर सकता है, जैसे जुर्माना वसूल करने के लिए नियम निर्धारित हैं। इसके अलावा, उस वारंट के निष्पादन के बाद, यदि किसी व्यक्ति ने भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए पूरा भत्ता और कार्यवाही के खर्च का भुगतान नहीं किया है, तो उसके लिए मजिस्ट्रेट एक महीने तक की अवधि के लिए, या यदि वह पहले चुका दिया जाता है तो चुकाने के समय तक, कारावास की सजा का आदेश दे सकता है।
परंतु यदि कोई रकम इस धारा के तहत देय है, तो उसे वसूल करने के लिए वारंट तब तक नहीं मिलेगा, जब तक कि एक साल के भीतर न्यायालय से आवेदन न किया गया हो। यह आवेदन उस तारीख से होना चाहिए, जब वह रकम देय हुई थी।
यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि वह अपनी पत्नी को भरणपोषण तभी देगा जब वह उसके साथ रहे, और पत्नी उसके साथ रहने से इंकार करती है, तो मजिस्ट्रेट पति के इस इंकार के कारणों पर विचार कर सकता है। यदि मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि पति का ऐसा कहना उचित है, तो वह इस धारा के तहत आदेश दे सकता है, चाहे पत्नी का इंकार सही क्यों न हो।
स्पष्टीकरण: यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखेल रखता है तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इंकार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा।
 बीएनएसएस 144(4)
कोई पत्नी अपने पति से भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए भत्ता और कार्यवाही का खर्च प्राप्त करने का हक नहीं रखेगी, अगर वह जारता(Adultery) की स्थिति में है, या यदि वह बिना किसी उचित कारण के अपने पति के साथ रहने से मना कर रही है, या यदि पति-पत्नी आपस में सहमति से अलग रह रहे हैं।
 बीएनएसएस 144(5)
मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई पत्नी, जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है, जारता की दशा में रह रही है, यानी वह अपने पति से अलग रह रही है, या वह बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इंकार कर रही है, या वे दोनों आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं।

0 Comment:

Post a Comment

Site Search