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जजों के खिलाफ एकमात्र संवैधानिक कार्रवाई, महाभियोग जटिल पिछले 75 वर्षों में तीन या चार प्रयासों के बावजूद किसी भी जज पर महाभियोग नहीं लगाया जा सका।

पूरे देश में नेताओं से वरिष्ठ अधिवक्ता तक कैश-एट-होम पर बयान
महाभियोग श्रमसाध्य, जटिल और कठिन 75 वर्षों में कोई महाभियोग नहीं हुआ
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस मामले की सख्त जांच की बात कही
जांच होने तक तबादले को रोक दिया जाना चाहिए पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे


कानपुर 23 मार्च 2025,
23 मार्च 2025, नई दिल्ली:
पूरे देश में नेताओं से लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता तक कैश-एट-होम पर बयान दे रहे हैं।
भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कैश-एट-होम की फोरेंसिक जांच की मांग की है और कहा है कि महाभियोग के मौजूदा नियम के बजाय जजों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जरूरत है। जजों के खिलाफ एकमात्र संवैधानिक कार्रवाई, महाभियोग, इतनी जटिल है कि पिछले 75 वर्षों में, तीन या चार प्रयासों के बावजूद किसी भी जज पर महाभियोग नहीं लगाया जा सका है,यह घटना न्यायिक व्यवस्था की जड़ में चोट हैं" अगर लोग "इस तरह की चीजें देखते हैं और जज दोषी हैं, तो जल्द से जल्द कार्रवाई की जानी चाहिए"। श्री रोहतगी ने कहा, "अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए।" "आज संविधान के तहत एकमात्र कार्रवाई महाभियोग है। महाभियोग इतना श्रमसाध्य, जटिल और कठिन है कि 75 वर्षों में कोई महाभियोग नहीं हुआ है," उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले पर चर्चा करते हुए कहा, जिनके घर से 14 मार्च को होली की रात आंशिक रूप से जले हुए नोटों का ढेर बरामद हुआ था। कथित बरामदगी जज के दिल्ली स्थित बंगले में लगी आग को बुझाने के लिए अग्निशमन विभाग को बुलाए जाने के बाद हुई थी। इसके साथ ही श्री रोहतगी ने मामले की आंतरिक जांच के आदेश देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाया। पुलिस जांच, फोरेंसिक जांच व वीसीडी, सीसीटीवी फुटेज की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मामले की तह तक पहुंचने के लिए इन साक्ष्यों को एकत्र किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कॉलेजियम के माध्यम से न्यायाधीशों के चयन की वर्तमान प्रणाली पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, "न्यायाधीशों की नियुक्ति के तरीके और न्यायाधीशों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के तरीके पर बहस कर फिर से विचार किया जाना चाहिए।"
उन्होंने कॉलेजियम को "बिल्कुल असंतोषजनक और अस्पष्ट" बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की "कुछ हद तक चुनिंदा" व्याख्या की है।
"10 साल पहले की कोशिश को अदालत ने ठुकरा दिया था। एनजेसी (राष्ट्रीय न्यायिक आयोग) खराब था, तो कुछ बाहरी लोगो की समित न्यायाधीशों की सिफारिश करे और केवल "न्यायाधीशों का चयन करने वाले न्यायाधीश" न हों।" न्यायमूर्ति वर्मा को 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया था। आज, सर्वोच्च न्यायालय ने मूल न्यायालय में वापस स्थानांतरित करने की सिफारिश की है - एक ऐसा निर्णय जिसकी आलोचकों ने भी आलोचना की है। स्थानांतरण का जले हुए नोटों की खोज से कोई लेना-देना नहीं है। "मुझे सर्वोच्च न्यायालय का कथन कभी समझ में नहीं आया कि इस स्थानांतरण का नकदी घोटाले से कोई लेना-देना नहीं है। मेरे अनुसार, नकदी घोटाले के कारण ही उनका तबादला प्रस्तावित है, तह तक जाना चाहिए - क्या न्यायाधीश अपराधी व नैतिक पतन का दोषी है या  उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल किया जा रहा है,।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस मामले की सख्त जांच करने की बात कही थी
पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने कहा कि मामले की जांच होने तक किसी भी तबादले को रोक दिया जाना चाहिए। "क्योंकि अगर उन्हें (न्यायमूर्ति वर्मा को) इस वजह से नहीं बल्कि अन्य प्रशासनिक कारणों से स्थानांतरित किया जा रहा है, तो दोनों मुद्दे आपस में जुड़ गए हैं। अगर उनके खिलाफ आरोप झूठे हैं, तो उनका तबादला करना उनके साथ बहुत अनुचित है और अगर वे सच हैं, तो तबादला बहुत कम है,"

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