धारा 114 अपने पूर्व के आदेशों की समीक्षा करने का अधिकार प्रदान करता है।
समीक्षा आवेदन में न्यायालय निर्णय की त्रुटि, पूर्वाग्रह या अनियमितता स्पष्ट होनी चाहिए।
प्रतिवादियों को अधिकारों की रक्षा, पूर्व आदेशों की समीक्षा तथा न्याय हेतु वैकल्पिक उपाय
डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 9450125954
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) भारतीय न्यायपालिका की एक महत्वपूर्ण विधायी दस्तावेज है, जिसका उद्देश्य न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया को सुगम और प्रभावी बनाना है। इस संहिता का विभिन्न धाराओं में विभाजन न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल बनाने के साथ-साथ प्रतिवादियों और वादी दोनों के अधिकारों की रक्षा करने हेतु किया गया है। न्यायालय को धारा 114 अपने पूर्व के आदेशों की समीक्षा करने का अधिकार प्रदान करता है।
धारा 114 के अंतर्गत प्रतिवादी समीक्षा आवेदन दायर कर सकते हैं, बशर्ते कि उन्होंने पहले से किसी अपील को दायर नहीं किया हो। यह प्रावधान भारतीय न्याय प्रक्रियाओं के अंतर्गत न्याय की सटीकता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है। इस धारा का मुख्य उद्देश्य न्यायालय को यह अनुमति देना है कि यदि किसी कारणवश पूर्व के आदेश में कोई त्रुटि या चूक पाई जाती है, तो उसे सुधार किया जा सके।
धारा 114 के अंतर्गत समीक्षा आवेदन दायर करने के लिए न्यायालय के समक्ष उन तथ्यों और परिस्थितियों को प्रस्तुत करना आवश्यक होता है, जो न्यायालय के पूर्व के आदेश को चुनौती देते हैं। यदि प्रतिवादी को लगता है कि आदेश में अहित या त्रुटि हुई है, तो वह इस धारा का के आधार पर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है। समीक्षा आवेदन दायर करने के लिए प्रतिवादी को अपील दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे यह प्रक्रिया अधिक सरल और प्रभावी बनती है।
समीक्षा आवेदन दायर करते समय कुछ शर्तों का पालन करना अनिवार्य होता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि आवेदन दायर करते समय न्यायालय ने जो निर्णय लिया था, उसमें स्पष्ट त्रुटि, पूर्वाग्रह या अन्य किसी प्रकार की अनियमितता होनी चाहिए। न्यायालय इस बात की जांच करेगा कि क्या पूर्व का आदेश किसी संवैधानिक या वैधानिक सिद्धांतों के विरुद्ध था या नहीं। यदि ऐसा कोई तथ्य पाया जाता है, तो न्यायालय पुनर्विलोकन करने के लिए विवश होता है।
समीक्षा आवेदन का समाजिक और कानूनी महत्व कई दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। यह प्रतिवादी को न्याय प्रदान कर भारतीय न्यायपालिका की प्रणाली में संतुलन और निष्पक्षता को भी बनाए रखता है। इसके माध्यम से, न्यायालय को निर्णयों की समीक्षा करने और आवश्यकतानुसार सुधार करने का अवसर मिलता है। इससे न्यायालय के निर्णयों में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहती है।
प्रतिवादी के लिए धारा 114 का प्रावधान कानूनी उपाय न्याय के प्रति आस्था को मजबूती प्रदान करता है। यह अपेक्षा की जाती है कि इस धारा के माध्यम से न्यायालयों में होने वाली त्रुटियों का समाधान किया जा सकेगा, जिससे आम जनता का न्याय प्रणाली पर विश्वास बढ़ेगा।
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 114, आदेश 47 के अंतर्गत समीक्षा आवेदन का प्रावधान भारतीय न्यायालयों में प्रतिवादियों को अपने अधिकारों की रक्षा करने, न्यायालय के पूर्व के आदेशों की समीक्षा कराने तथा न्याय की प्राप्ति हेतु एक वैकल्पिक उपाय प्रदान करता है। इस धारा के माध्यम से, न्यायपालिका को अपने निर्णयों का समुचित अवलोकन करने और आवश्यक सुधार करने का अवसर मिलता है, जिससे संपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया में सुधार आता है। धारा 114 भारतीय न्यायपालिका में न्याय और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है कि कोई भी पक्ष अपनी आवाज सुनाने से वंचित न रहे।
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