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 भारतीय न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता


- भारतीय न्यायिक प्रणाली संविधान का मौलिक हिस्सा है, जो न्याय के आदर्शों को सुनिश्चित करती है।

- वर्तमान में न्यायिक प्रक्रिया धीमी, जटिल और अकुशल हो गई है, जिससे सुधार की आवश्यकता है।

- न्यायिक प्रक्रिया की गति मंद है, जिसके कारण लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है; सुधार हेतु केस प्रबंधन, न्यायाधीशों की नियुक्ति और तकनीकी समावेश जरूरी है।

- न्यायालयों की प्रक्रियाएं जटिल हैं, इसलिए सरल और स्पष्ट नियमों की आवश्यकता है ताकि सभी वर्ग के लोग न्याय प्राप्त कर सकें।

- न्यायिक स्वायत्तता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक है, जिससे भ्रष्टाचार और पक्षपात की संभावना कम हो सके।

- सुधार से न्याय की गुणवत्ता बढ़ेगी और समाज में विश्वास एवं समरसता को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।


भारतीय न्यायिक प्रणाली देश के संवैधानिक ढांचे की मौलिक इकाई है, जो न्याय के सार्वभौमिक आदर्शों को सुनिश्चित करती है। तथापि, वर्तमान समय में इस प्रणाली के कार्यकलापों में कई समस्याएँ सामने आई हैं, जिनके कारण न्याय की प्रक्रिया धीमी, जटिल और अकुशल होती जा रही है। अतः भारतीय न्यायिक प्रणाली में सुधार अनिवार्य हो गया है।

 न्यायिक प्रक्रिया की गति अत्यंत मंद है, जिसके कारण लंबित मामलों की संख्या भारी है। यह विलंब न्याय के सुलभता और प्रभावकारिता को प्रभावित करता है। केस प्रबंधन प्रणाली में सुधार, अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति और आधुनिक तकनीकों का समावेश आवश्यक है।

 न्यायालयों की प्रक्रियाएं अत्यधिक पेचीदा और जटिल हैं, जो आम जनता के लिए न्याय प्राप्ति को कठिन बना देती हैं। सरल, स्पष्ट और सुव्यवस्थित नियम बनाए जाने चाहिए, ताकि सभी वर्ग के लोग बिना किसी बाधा के न्याय संस्थानों तक पहुँच सकें।

न्यायिक स्वायत्तता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना  आवश्यक है। इससे न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बढ़ेगा और भ्रष्टाचार एवं पक्षपात की संभावना न्यूनतम होगी।

इस प्रकार, भारतीय न्यायिक प्रणाली में सुधार न केवल न्याय की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, बल्कि समाज में विश्वास और सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए भी आवश्यक है। समय के साथ बदलती परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार न्यायिक सुधार का संघर्ष सतत चलता रहना चाहिए।

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